Sunday 28 August 2016

अधूरे स्वप्न

पात्र :
बालक 
पिता 
होटल वाला 
महाजन 
होटल वाले की माँ 

(बचपन सभी बच्चों का जन्म सिद्ध अधिकार है जो माता-पिता के प्यार और देख-रेख में सभी को मिलना चाहिए, ये गैरकानूनी कृत्य बच्चों को बड़ों की तरह जीने पर मजबूर करता है। इसके कारण बच्चों के जीवन में कई सारी जरुरी चीजों की कमी हो जाती है जैसे- उचित शारीरिक वृद्धि और विकास, दिमाग का अनुपयुक्त विकास, सामाजिक और बौद्धिक रुप से अस्वास्थ्यकर आदि। इसकी वजह से बच्चे बचपन के प्यारे लम्हों से दूर हो जाते है, जो हर एक के जीवन का सबसे यादगार और खुशनुमा पल होता है। ये किसी बच्चे के नियमित स्कूल जाने की क्षमता को बाधित करता है जो इन्हें समाजिक रुप से देश का खतरनाक और नुकसान दायक नागरिक बनाता है। बाल मजदूरी को पूरी तरह से रोकने के लिये ढ़ेरों नियम-कानून बनाने के बावजूद भी ये गैर-कानूनी कृत्य दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है।
क्या आपको नहीं लगता कि कोमल बचपन को इस तरह गर्त में जाने से आप रोक सकते हैं? देश के सुरक्षित भविष्य के लिए वक्त आ गया है कि आपको यह जिम्मेदारी अब लेनी ही होगी। क्या आप लेंगे ऐसे किसी एक मासूम की जिम्मेदारी?
इन्ही कुछ प्रश्नों के जवाबों को तलाशता, एक छोटा सा प्रयास है "अधूरे स्वपन"- आप सब इसपर गौर फरमाएं -
(बालक घर के कुछ काम निपटा पॉलीथिन में किताबें सँभालते हुए निकलते हैं)
बालिका: भैया स्कूल जा रहे हो? मैं भी जाना चाहती हूँ. पर माँ मुझे नहीं जाने देती  
पिता: कहाँ चले? और ये हाथ में क्या है?
बालक: पिताजी स्कूल जा रहे हैं. काम सारा निपटा दिया है. अगर थोड़े पैसे हैं तो दो...फी जमा नहीं की तो नाम कट  जायेगा  
पिता: बंद करो बकवास, पैसे नहीं है तुम्हारे फी भरने को. स्कूल में पढ़ेंगे! दो हाथ और काम करेंगे तो घर का ख़र्च निकलेगा।  ये नहीं सूझता?
माता: अरे रश्मि, चल तुझे भी साथ ले चलूँ मालकिन के घर. मेरा हाथ बटा देगी तो दो चार और घर के काम पकड़ लूंगी। फिर तेरे ब्याह के पैसे भी तो जमा करने हैं.
बेटी: माँ, मुझे भी स्कूल जाने दो।  मुझे अभी से काम नहीं करने 
माता अभी से नहीं तो कब? अभी से करने लगेगी तबी तो कुछ पैसे जमा होंगे. 
पिता (बालक से): चुपचाप से तू होटल वाले के यहाँ जा. मैंने उससे बात कर ली है। वो तुझे काम पर रख लेगा. 
बालक: पर बाबा, कुछ पढ़ लूंगा तो मुझे नौकरी मिल जाएगी न 
पिता: (पालीथीन छीन फेंक देता है) बहुत पढ़ा दिया. स्कूल की तरफ टाँगे बढाई तो खैर नहीं। इतने बड़े हो गए. जा कर दो पैसे कमा कर ला.
दृश्य २ (होटल) 
बालक: बाबा ने भेज है काम करने वास्ते
होटल वाला - ठीक है, पर मन लगा कर काम करियो, किसी भी ग्राहक को नाराज नहीं करीयो।  जाओ वो जूठे बर्तन पड़े हैं, ठीक से मलइयो एक भी ग्लास टुटा तो तेरी पगार से काट लूंगा 
बालक: मैं मन से ही करूँगा चाचा ( पालीथीन रख देता है)
(बर्तन धोता, चाय देता। ....महाजन का प्रवेश )
महाजन होटल वाले से): चल मेरे पैसे निकाल. कब से उधार ले रखा है. चुकता करने में आज कल आज कल पर टाल रहा है 
होटल वाला: अरे मुन्ना साहब वास्ते गर्मागर्म चाय लाओ ( गिड़गिड़ा कर) भाई अगले महीने बिलकुल चूका दूंगा। होटल थोड़ा मंदा चल रहा है 
महाजन; आज तो रकम लिये बगैर मैं नहीं टलने वाला( बैठ जाता है) नहीं दिया तो बुलाता हूँ दो चार गुंडों को)
होटल वाला पसीने पोंछते हुए: अच्छा आप चाय पिए; मैं देखता हूँ  
( महाजन को चाय देते हुए मुन्ने के हाथ से चाय छलक कर उसके कपडे को गन्दा कर देते है )
महाजन :(मारते हुए पानी का ग्लास मुँह पर )कौन है बे तू ? चाय तक देने नहीं आता।  मेरी कमीज का कबाड़ा कर दिया 
होटल वाला : पैसे देते हुए ) क्या गलती हो गयी साहिब?
महाजन:किसअनाड़ी को काम पर रख लिए हो? मेरी नयी कमीज का सत्यानाश कर दिया 
. (चल देता है)
(मुन्ना मार खाता  है पालीथीन के साथ बाहर)
दृशय ३ 
(होटल वाला साईकिल से वापस आते वक्त मुन्ने को स्ट्रीटलाइट में पढ़ते देखता है , ठठक कर रुक जाता है 
फिर घर पहुँचता है)
माँ: दे आये पैसे? इतने मुश्किल से इक्कठे किये थे मैंने। कितना कहा की पढाई करो तो ढंग की नौकरी मिलेगी।  पर की नहीं. हॉटेल खोलेंगे महाजन से पैसे काढ़ कर ? देख लिया बात नहीं मानने का नतीजा। जो भी कमाई होती है कर्ज चुकता करने में खर्च हो जाता है 
होटल वाला गम शूम हो ( खुद से - सही में तब पढाई की होती! और वो मुन्ना बेचारा ! मैं कितना बड़ा गुनाह कर बैठा! कल फिर कोई मेरे जैसा बनेगा कर्जदार। बेचारा मुन्ने को मैंने कितना मारा ! मैं कैसे प्रायश्चित करूँ
दृश्य ४ होटल में 
मुन्ना डरते हुए ) चाचा अब से ध्यान लगा कर काम करूँगा 
काम कर घर जाते समय होटल वाला मुन्ने के हाथ में पैसे की जगह किताब रखता है 
मुन्ने की आँखें ख़ुशी से छलक जाती है होटल वाला उसका हाथ पकड़ स्कूल ले जाता है) 
- मैं इतिहास नहीं दोहराने दूंगा।  तुम्हारी जगह यहाँ है होटल में नहीं।
अभी तो तेरे पंख उगे थे , अभी तो तुझको उड़ना था 
जिन हाथों में कलम शोभती, उनसे मजदूरी क्यों करानी? 
मूक बधिर पूरा समाज है, चलो क्रांति जगानी है 
इन हाथों में कलम किताब दे नयी तान छेड़नी है। 












1 comment:

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