Saturday 20 August 2016

सूनी आँखें

पात्र :

  1. पेड़
  2. बालक
  3. युवा (बूढ़ा)
  4. युवती (बूढी)
  5. सूत्रधार(कथावाचक)


सार: माता पिता और पेड़ में गहरी समानता है। बचपन में हम उनके साथ खेल कर बड़े होते हैं और बड़े होने के बाद उनकी जरूरत के समय उन्हें छोड़ के चल देते हैं और तभी वापस आते हैं जब हमे उनकी कोई जरूरत होती हैं। धीरे धीरे जीवन इसी तरह से बीत जाता है। जीवन की इस सबसे बड़ी पूंजी को गवां कर हम अपने को सभ्य, सुसंस्कृत होने का ढोल पीटते हैं। प्रश्तुत है आपके समक्ष आज के सामाजिक समस्या से जुडी लघु नाटक "सूनी  आँखें"

दृश्य १
(पेड़ व बालक खेलते हुए) नेपथ्य: हम बने तुम बने इक दूजे के लिये,(पेड़)आई डोंट नो व्हाट तू से (बालक).
(सोनू ओ सोनू, जल्दी आ जा. गाडी का समय हो गया। देर करोगे तो गाडी छूट जाएगी)
सोनू: आया माँ, अभी आया.
पेड़: कहाँ जा रहे हो मित्र ?
सोनू: माँ मुझे बाहर पढाई के लिये भेज रही है.
पेड़: तुम मुझे छोड़ के चले जाओगे?
सोनू: मैं नहीं जाना चाहता. पर एक दिन तो सब को जाना पड़ता है
पेड़:(गहरी निःश्वास) मेरे साथ कौन खेलेगा फिर? मुझे तुम्हारी बड़ी याद आएगी।
सोनू: मुझे भी. वहां मेरे पास तो खिलौने भी नहीं होंगे..सिर्फ किताबें ही किताबें। मेरे पास तो पैसे भी नहीं होंगे कि  मैं खिलौने भी खरीद सकूं.
पेड़: मित्र तुम उदास न हो। मैं हूँ न. मेरे ये फल कल से कौन खायेगा? इन्हें तोड़ कर बेच जो के पैसे मिले उन्से  मेरी ओर से उपहार समझ खिलौने खरीद लेना।
सोनू: तुम कितने अच्छे हो मेरे मित्र!
पेड़: मुझे भूलना मत मेरे मित्र।
नेपथ्य: और सोनू ने पेड़ से फल तोड़ उन्हें बेच खिलौने खरीद लिया. शहर जा कर पढाई करने में इस कदर लीन हुआ की पेड़ को भूल ही गया। पढाई पूरी कर नौकरी की जुगाड़ की. फिर शादी रचाई। परिवार में एक से दो, दो से तीन हुए)

दृश्य २ (शहर)
सोनू: मेरी चांदनी ओ मेरी चांदनी। ... हम बने तुम बने इक दूजे के लिए
चीकू :आई डोंट नो व्हाट तू से
चांदनी: बंद करो ये चोंचले। जब देखो तो नाचना गाना। तुम्हे कुछ और सूझता भी है? अब हमारा बच्चा भी है। कुछ सोचा भी करो।
सोनू:कर तो रहा हूँ नौकरी. चला रहा हूँ न घर के खर्चों को।
चांदनी: क्या खाक चला रहे हो। अपनी एक छत भी मयस्सर न करवा सके।  तुम्हारी इस नौकरी से मकान का किराया, घर के खर्चे, बच्चे की पढाई हो जाय तो बहुत है.  .
सोनू:अब क्या मैं अपनी चमड़ी बेच डालू ?
चाँदनी: मैंने ये कब कहा? छोड़ो, मैं चली घर के काम निपटाने।  तुम्हे कुछ कहना अपना मुहँ खाली करना है(प्रस्थान) ।
सोनू: जाऊं कहाँ बताये दिल, दुनिया है बड़ी तंग दिल, चांदनी आयी घर जलाने, सूझे न कोई मंजिल(गाता हुआ भटकता पेड़ के पास पहुँचता है)
पेड़ (ख़ुशी से): अरे मित्र! मेरी तो आँखें तुम्हारी राह ताकते ताकते पथरा गयी। तुम तो मुझे भूल ही गए, ज़माना गुजर गया तुम्हारे संग खेले...आओ खेलते है..
सोनू: क्या खेलु? अब मैं बच्चा थोड़े रहा. अब तो मैं एक बच्चे का बाप हूँ.
पेड़: अच्छा, ये तो बड़ी ख़ुशी की बात है. पर तुम्हारा मुहँ देवदास की तरह क्यों लटका हुआ है?
सोनू: अब अपनी व्यथा क्या कहूँ? मेरी बीबी मुझसे नाराज है. रोज खिच खिच करती है
पेड़: वो क्यों भला?
सोनू: मैं उसे घर बनवा कर नहीं दे सका. जी करता है की तुम्हारे दाल से लटक फांसी लगा लू.
पेड़: च्च्च।  इतने निराश न हो. तुम्हारा मित्र अभी है।  मेरे ये डाल  किस काम के जो मित्र के काम न आ सके. इन्हें काट कर घर बनवा लो.
सोनू: सच... मित्र तुम कितने अच्छे हो! मैं तुम्हारा ये उपकार कभी न भूलूंगा.
(पेड़ ने अपनी डाल झुका दी....अवसरवादी सोनू उन्हें काट डालता है.... समय गुजरता  गया सोनू वापस नहीं आया. उसके बच्चे बड़े हो चले थे और बूढा सोनू और उसकी पत्नी अब बच्चो के रहमों करम पे थे । )

दृश्य ३
चांदनी(लाठी ले खांसती हुई): बहुरिया, जरा मेरी दवा देना। खांस खांस के मेरा दम फूल रहा है.
(अंदर से आवाज़) हूह चैन से सो भी नहीं सकती, जब देखो बूढ़ी खांसते रहती है...ये व्रिधाश्रम क्यों नहीं चले जाते?
चीकू: क्या शोर मचा रखा हैं आप दोनों ने।  मेरे से ये रोज रोज के झंझट नहीं झेले जाते। आप लोग व्रिधाश्रम चले जाए
सोनू: ये क्या कह रहे हो बेटा? हम अकेले कैसे रहेंगे इस बुढापे में?
चीकू: मैंने कोई आपके बुढापे का ठेका नहीं ले रखा है (चल देता है)
(सोनू व उसकी पत्नी गठरी उठा चल देते हैं और वापस उसी पेड़ के पास पहुँचते हैं
तेरे दूध के लिए ,
हमने चाय पीना छोड़ा था।
वर्षों तक एक कपडे को ,
धो धो कर पहना हमने ,
पापा ने चिथड़े पहने ,
पर तुझे स्कूल भेजा हमने।
चाहे तो ये सारी बातें ,
आसानी से तू भूल जा ,
बेटा मुझे अपने साथ ,
अपने घर लेकर जा।

 घर के बर्तन मैं माँजूंगी ,
झाडू पोछा मैं करूंगी ,
खाना दोनों वक्त का ,
सबके लिए बना दूँगी।

दृश्य ४ 
 पेड़: अहा मेरे मित्र! बहुत वर्षों बाद तुम्हारे दर्शन हुए. कहो कैसे हो?
सोनू: क्या कहूँ अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ. बूढ़ा- काम का न काज का ढाई सेर आनाज का. बच्चों पर बोझ बन गया. घर उनके नाम कर दी और आज फिर बेघर हूँ. सारी जमा पूंजी बच्चे की पढाई के ऋण (लोन) को चुकता करने में लग गए. अब मारे मारे फिर रहे हैं हम दोनों
पेड़: बड़ा दुःख हुआ ये जान कर. पर अब मैं तुम्हारी क्या मदद करूँ? मैं भी तो बूढ़ा हो गया हूँ. मेरे पास अब फल भी नहीं ..डाल भी नहीं। मैं तो अब ठूठ सा रह गया। कोई पानी भी नहीं देता.
सोनू: बस कुछ न कहो मित्र. मैं हूँ न, मुझे कुछ नहीं बस पनाह चाहिये। बचे खुचे दिन तुम्हारे पास गुजार लूँ।
पेड़: आओ आओ मैं भी बूढ़ा तुम भी बूढ़ा अच्छी निभेगी जब मिल बैठेंगे बूढे दो.

(तभी बच्चा दौड़ता आता है सोनू के पैरों से लिपट जाता है)
पीकू: बाबा बाबा दादी,दादी मैं भी आपके पास रहूँगा यहीं आपके इस पेड़ फ्रेंड के पास।  मुझे पेड़ पौधे से भी बहुत प्यार है ।  मेरी टीचर मुझे रोज बताती है बड़े बूढो की सेवा करों, पेड़ लगाओ उन्हें पानी से सींचो। मैं आप दोनों का और आपके फ्रेंड का भी ध्यान रखूँगा। देखिये मम्मी पापा भी आ रहें है।
 (नेपथ्य- माँ की ममता सबसे प्यारी,
सारे जग में सबसे न्यारी,
सबके दिल को भाने वाली,
प्यार का मोल सिखाने वाली.
पिता का प्यार भी है अनोखा,
सारे जीवन को उमंगों से भरता,
हाथ पकड़कर चलना सिखाए,
जीवन की नयी राह दिखायें.
मात पिता की सेवा करना,
प्यार नम्रता में ही चलना,
सदाचार अपनाते रहना,
जीवन खुशियों से तुम भरना.)

इसलिए हमसब प्रेम और सेवा भाव का प्रण लें और इस युवा पीढ़ी की सोंच  को सही दिशा दें । धन्यवाद ।






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