Sunday 28 December 2014

प्रतीक्षा विहीन शामों से कहीं ज्यादा तकलीफदेह इंतज़ार भरी शाम हुआ करती है क्योंकि इंतज़ार धीरे धीरे शाम से रात में बदल जाती है जो उम्र सी लम्बी हो जाती है फिर मुरदे सी पथरा जाती है। 

Saturday 23 August 2014

शेष स्मिृतियाँ 


उसने अधनींदी अवस्था में ही अपने हाथों को फैला अपने चारों ओर टटोला। शैय्या के बीच स्वयं को पा कर उचटी नींद को पुनः लाने का प्रयास किया। पर मुंदी आँखों में कुछेक स्मृतियाँ दस्तक देने लगी। बचपन में वह अक्सर ही बिस्तर से लुढक जाया करती थी। पर वो दो जोड़े हाथ उसे वापस बिस्तर पर डाल दिया करते, उनकी धीमी-धीमी थपकी उसे पुनः सुला दिया करती थी। अधनींदी में उसने उन थपकियों को महसूस करना चाहा।
वह ना गिरे- इसलिए माँ उसे दोनों भाइयों के बीच या दीवार की तरफ सुलाती थी। पर कभी-कभी, छोटी-छोटी बातों पर भाइयों से कट्टी कर लेना उसे महंगा पड़ जाता था। रेल गाड़ी में भी इक दफा वो ऊपर की बर्थ से मध्य रात्रि में नीचे रखे बक्से पर जा गिरी। तब से माँ उसे ऊपर की बर्थ पर सुलाती तो दोनों सिक्कड़ के बीच के खुले हिस्से को मोटे फीते या रस्सी से घेर देती। जाने क्या जादू था उन हाथों में कि उनके स्पर्श से, उनके थाम लेने मात्र से ही सारी चोट भर जाया करती थी !
अब न तो वो बिस्तर के सुरक्छित किनारे हैं न ही थामने वाले हाथ...बस एक पसराव है, स्मृतियाँ शेष है.…    

Saturday 9 August 2014

STILL LIFE

With heavy steps, she closes the gate of her car. Slinging the hand bag on her shoulder and carrying the carry bag of lunch-box and water bottle, she comes to the lift, opens the gate and is about to close, she hears the footsteps of someone. A face peeks out at her. Her hand, about to press the ‘On’ button, stops with a jerk, and she opens the gate for her neighbour to enter the lift. Her neighbour enters with a carry bag full of groceries and vegetables, puts down the bag on the lift floor, closes the gate and presses the key for 4th floor. They have the same destination but none of them speak. The lift seems heavy. Silence speaks a lot with the sound of lever and pulley. While the lift goes up, she looks at the closed doors of each floor. She reads the name plates. The sun is about to set behind the tall buildings. It is getting dark inside the lift too. So, she switches on the light. But the dim light of the CFL is insufficient to lift the approaching darkness which hangs on to their sealed lips. The lift stops with a slight jerk at the 4th floor. Her neighbour opens the gate and they both come out of the lift. The stagnated silence lifts up with the unlocking sound of their doors.

Thursday 17 July 2014

शब्द, विचार, कूंची, रंग, चित्रपट्टी- ये बेवफा हैं या मैं ?
इनके बिना मेरा अन्तः बंजर भूमि सा प्रतीत होता है। कैसे इनका पुनरोपण करूँ या ये स्वतः रोपित होंगे ? नकारा सा महसूस होने लगा है।
दिन और रात ठंडी चाय के घूँट की तरह हलक में उतरते जा रहे हैं और मैं जश्न के बाद उतरते तिरपाल और फ़ानूसों के बीच उन व्यस्त पलों को बिखरे पसरे कपडे औ सामान की तरह सहेजते जा रही हूँ... 

Tuesday 18 March 2014

एक होली तब मना करती थी
जब पी के गुलाल भरे हाथ
बढ़ा देती थी गालों की सुर्खी
तब आस थी , उल्लास था
रंगों भरा मधुमास था।

आज भी मनी एक होली
नयन नीर की बेरंग होली
बहा ले गयी गालों से सुर्खी
अन्तः जा फटी हैं दरारें
यहाँ ना आस, ना उल्लास है

शेष बची पतझड़ की आह है
दरारें झड़े पत्तों की बनी कब्र है
जहाँ उग आयी हरी नरम घास
को नयन नीर देती सींच है
ये होली ही जीवन की झोली है 




Tuesday 11 March 2014

पड़ोस के एक परिवार के गृहस्वामी की पांच दिन पहले घटी सड़क दुर्घटना में तत्क्षण मृत्यु से शोकाकुल गृह स्वामिनी की मर्मस्पर्शी याचना "दीदी, अब आप मुझको अपने साथ रखियेगा, अकेला न छोड़ियेगा..." , से आँखें डबडबा गयी.
समाज की विचारधारा ने हम विधवाओं की एक अलग जाति ही बना दी है...एक अदृशय रेखा के इस पार हम है और उस पार वो विचारधारा 

Tuesday 4 March 2014

टूटी छड़ी 


वो छड़ी नहीं टूटी थी उस दिन
टूटी थी उसके अंतः की वो बांध
बरसों से बंधी धीरज छण में गयी चूक
उफनती कुढ़न की सीमा को लांघ।

टूटी छड़ी पर स्तब्ध था वो कक्ष
कक्ष जो कि कभी रहा था साक्ष्य
समर्पण और मौन स्वीकृति का
हताश उस दिन उसने मूँदे सारे गवाक्ष।

टूटी छड़ी अलमारी में बंद पड़ी
शापग्रस्त हो करती रही प्रतीक्षा
जैसे अहिल्या शिलाखंड बन पड़ी रही
उर में लिए चिर उद्धार की इच्छा।

जीवन कम्पन का था थमना कि
टूटी छड़ी का मौन हो चला मुखर
कांपते, थके हाथों ने भरे ह्रदय से
अंततः टूटी छड़ी का कर दिया तर्पण।

 Fondness Choked with Words Unspoken...


What appears to be bright and white,
Has double-fooled and bluffed our sight.

Wherein has faded that song sonorous...
Like the roots parched but once porous?

Some chords lie buried unsung and broken
Some fondness choked with words unspoken...

Saturday 1 March 2014

मन में कभी कभी चाहतों ने अपने पैर पसारने की शुरुआत करनी चाही  तो उसने उन्हें कालीन की तरह लपेट कर कक्ष के एक कोने में खड़ा कर दिया।  फुर्सत मिली तो उसे धुप में फैला कर डंडे से पीट पीट सारी चाहतों के कण कण को हवा में बिखेर दिया। पर नामुराद कालीन में से उसकी बासी महक आती रही.… 

Thursday 20 February 2014

Condolence

शोक सभा की मंत्रणा


स्कूल पहुँची तो ऑफिस के बाहर एक भीड़ जुटी दिखी- छिछली भीड़, उतरे, चिंतित चेहरों की फुसफुसाती भीड़। विद्यालय में बीते कुछ महीनों में घटी कई असामान्य घटनाओं से मन आशंकित हुआ। सो, आगमन की हस्ताक्षर पुष्टि पश्चात् भीड़ से पूछा - क्या बात है, सब कुशल-मंगल तो है? रात में फिर कुछ अनहोनी तो नहीं घटी ? (कल-परसों वैसे कड़ाके की  ठण्ड पड़ी थी.)

भीड़ से एक धीमी आवाज आयी-" आफिस कर्मचारी पासवान .…"

मैनें मष्तिष्क पर जोर डाला-"ऐं, कौन से पासवान जी?"

-जी, वो पतली मूछों वाला सांवला, दुबला, छोटा पासवान।

-अरे, हाँ.… क्या हुआ उन्हें? कल तक तो अच्छे भले थे।
(मष्तिष्क में एकाएक उनके डगमगाते कदम और लटपटाई अस्प्ष्ट शब्द कौंध गए- " हम तो सबके लिए है... काम से काम… सब खुश हम भी खुश... क्यों है न, मैडम?")

-नहीं, नहीं, उसे कुछ नहीं हुआ... वो उसका पुत्र बेचारा, च्च च्च... उसकी  छुट्टी की अर्जी  आयी है।  वो बेचारा तो भागे भागे अपने घर बरौनी गया है।

घंटी बजी और कुछ ने स्टाफ-रुम की ओर रुख किया, कुछ ने अपनी कक्षाओं की ओर , बचे कुछ विद्यालय प्रांगण में खिली चटकी धुप में शोक सभा की मंत्रणा के लिए खड़े रहे ( चार दिनों बाद जो धुप निकली थी). विचार विमर्श कर ये प्रस्तावना पारित हुआ कि अंतिम कालांश में शोक सभा का आयोजन होगा। पर, क्षेत्रीय  कार्यालय से डिप्टी  कमिश्नर के आगमन के साथ उस पारित प्रस्ताव ने हारे जुआरी की तरह किया प्रस्थान।

खैर संध्या हुई और बच्चों की छुट्टी और डिप्टी  कमिश्नर के प्रस्थान के बाद स्टाफ-रूम में पुन: शोक सभा के पारित प्रस्ताव ने किया आगमन -" चलिए भाई, अब पासवान के पुत्र के असमय मृत्यु पर हम सब दो मिनट का मौन रख उसकी आत्मा की शांति और शोक संतप्त परिवार के लिए प्रार्थना करें।"

सभी गम्भीर मुद्रा में खड़े हो गए।  पर तभी किसी ने प्रश्न किया-" उम्र क्या थी?"

-उम्र? अरे, अभी तो उसका विवाह ही  तय हुआ था।

कई आहें एक साथ उभरी- " हाय बेचारे को जवानी में ही काल ने डंस लिया। वैसे क्या हुआ था उसे?"

-वही लाइलाज बीमारी- टीबी।

-अरे भई, टीबी कोई बीमारी है भला... सर्दी-खांसी और बुखार , दवा से ठीक ही हो जाता है।

-च्च, बेचारा गरीब आदमी कहाँ से दवा के पैसे लाता ?

- क्या कहते है भाई साहब, दवा की जगह वो दूसरी खुराक लिया करता था।

-ह्म्म्म् ,ऐसा है ? तभी तो बेचारा काम से  गया।

किसी ने दीवाल घडी की ओर इशारा किया और सब ने फिर से गम्भीर मुद्रा बना शांति पाठ के लिए उपाध्याय सर की ओर देखा।

सर ने खखार कर गला साफ़ किया ही था कि पुन: किसी ने प्रश्न किया -"भई, मृत्युं की खबर पक्की है न? नहीं तो जिन्दा या बीमार आदमी का शोक सन्देश पढ़ना तो मृत्युं की अंतिम बुकिंग करने जैसा होगा।

-हुह, क्या कहते हैं? छुट्टी आवेदन में तो मृत्यु शब्द मैंने पढ़ा था।

- तब चलिए, सब खड़े हो दो मिनट का मौन रख लेते हैं।

आधे उठ खड़े हुए और आधे उठने के क्रम में थे ही कि पुन: किसी बुद्धिमान ने प्रश्न किया-"भई , पासवान का पुत्र ही मरा है न - सही सही तो पता है न क्योंकि शोक सन्देश की एक प्रति पासवान के यहाँ भेजनी होगी।"

-जी , सुना तो पुत्र का ही है , पर गारंटी से नहीं कह सकता।

वो उठने के क्रम में लोग पुनः बैठ गए -"पहले पता कर लें। .. शोक सभा तो कल भी की जा सकती है " और लोग अपना बैग बस्ता सँभालने लगें।

- थोडा ठहरिये भई, अभी आफिस से पता किये लेते हैं।  आखिर हम सब यहाँ इसी प्रयोजन से तो एकत्रित हुए हैं।

-हैं, ये क्या बात हुई भला, इसी प्रयोजन वास्ते किसी को मरा घोषित कर देंगे क्या ?

इधर बहस में शोक सभा टंगी रही और उधर घडी ने छह बजा दिए।

-बताइए भला, शोक सभा के बाद कोई ठहरता है क्या? छह बज गए...  क्या फायदा?

तभी किसी ने आफिस से आ पक्की खबर दी कि पासवान का भाई मरा है. फिर से कई प्रश्न उठे-"बड़ा या छोटा?"

- ये तो भई हमे नहीं पता। छोटा या बड़ा - भाई तो भाई होता है।

- हाँ चलिए, अब जल्दी से शोक सन्देश पढ़िए।  वैसे भी काफी देर हो चली है।

और उपाध्याय जी ने शोक सन्देश पढ़ा-" ...पूरा विद्यालय परिवार इस आकस्मिक निधन से शोकाकुल है मर्माहत है … शोक संतप्त परिवार को इस संकट की घडी में ईश्वर सहन शक्ति दे… ॐ शांति , शांति , शांति। "

लोगों ने दो मिनट कनखियों का मौन 'ॐ शांति' के उच्चारण के लिए ओड़े रखा और ॐ शांति के साथ ही बैग थैले के साथ अपने अपने घरों के लिए किया प्रस्थान।  उधर, बरौनी में पासवान ने भी अपने भाई के अंतिम संस्कार के लिए किया होगा प्रस्थान। बेचारा पासवान....


















Tuesday 7 January 2014




Lemonwallah (water colour)-


I wish I were a lemonwallah...
Sitting all day long on the pavement, 
Selling lemons and berries,
To the housewives and the children.
Long holidays with no lessons to plan,
Just a sheet and a colour-box,
A brush and a tumbler of tea,
And my son, now and then,
To peep over my shoulders-
"Good- Ek cup chai aur ho jai?"
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