Thursday 17 July 2014

शब्द, विचार, कूंची, रंग, चित्रपट्टी- ये बेवफा हैं या मैं ?
इनके बिना मेरा अन्तः बंजर भूमि सा प्रतीत होता है। कैसे इनका पुनरोपण करूँ या ये स्वतः रोपित होंगे ? नकारा सा महसूस होने लगा है।
दिन और रात ठंडी चाय के घूँट की तरह हलक में उतरते जा रहे हैं और मैं जश्न के बाद उतरते तिरपाल और फ़ानूसों के बीच उन व्यस्त पलों को बिखरे पसरे कपडे औ सामान की तरह सहेजते जा रही हूँ...