Tuesday 24 May 2011

Tum Kya Ho

तुम क्या हो? 
तुम अब में तब हो
तुम कहाँ में कब हो
तुम सब में रब हो.

तुम चित्रकार की कूँची हो, 
तुम शुभ्र, सच, शुचि हो,
हर ह्रदय में बसी सुरुचि हो.

तुम कलाकार का सृजन हो,
तुम कवि ह्रदय का गुंजन हो,
तुम नाटककार का मंचन हो.

तुम बांसुरी की मधुर तान हो,
तुम पक्षियों का कलरव गान हो,
तुम नित नवीन विहान हो.

तुम प्रहरी सीमा की जीत हो,
तुम करुण ह्रदय के गीत हो,
तुम निरंतन में अंतर रीत हो.

तुम शिशु की निश्चल मुस्कान हो,
कर्मभूमि के अडिग किसान हो,
सारे अवसादों के अवसान हो.

तुम निराकार में साकार हो,
तुम रण क्षेत्र में धनुष्तंकार हो,
पर हाहाकार में भी शान्ताकार हो,

तुम कण-कण में समाहित हो,
तुम पल-पल में प्रवाहित हो,
इक मधुर निनाद, संगीत हो.

तो, यह न सोचो तुम क्या हो,
तुम हर सोच की इक बयां हो. 

Friday 20 May 2011

Mujhe Wo Yaad Nahin Banana

  मुझे वो याद नहीं बनाना-
 जो अतीत की दीवारों में चुन दी जाये,
वो गूंज नहीं बनाना -
जो वीराने में विलीन हो जाये,
वो काँच नहीं बनाना-
जो चुभ कर इक टीस दे जाये,
वो तश्वीर नहीं बनाना-
जो दीवार पे धुल की परत पीछे छुप जाये,
वो सूखी पंखूरिया नहीं बनाना-
 जो किताबों के पन्नों के बीच मिले
वो शमा नहीं बनाना-
जो अपने ही परवानो को जला रौशन करे,
वो मोहरा नहीं बनाना-
जो शतरंज की बिसात पे बिछ पिट जाये 
पर, हाँ -
मुझे वो मशाल जरूर बनाना-
जो थकते, गिरते, भटकते क़दमों को इक दिशा दे जाये. 

Monday 16 May 2011

Chal Gayee Nidra

रात विचारों की जननी है और निद्रा हमारी दिन भर की कठीन मेहनत का पुरस्कार. फिर भी यह निद्रा कभी-कभी  हमसे जिद्दी बच्चे की तरह रूठ जाती है. जितना मनाओ वह उतना ही हमे से दूर भागती जाती है-

आज निद्रा फिर छल कर गयी,
रात बस आँखों में ही कट गयी.

कभी कस्तूरी मृग सी कुलाँचे भरती,
यादोंके गहन वन में खो जाती,
छलावा बन मुझको छल जाती.

कभी तितली सी फूल-फूल पर जा बैठती,
मुठ्ठियों में कैद करना चाही तो कांटे जा चुभे,
आँखों का काजल आंसू के साथ रात्रि की कालिमा में जा मिले.