23-09-2016
08:33
पूरब में किरण उगी है
खेत खलिहान में जा बिखरी है
ओस की बूंदों को सेंक सुखा
अब खिलने खेलने चली है।
पूरब में किरण उगी है
घर के मूंडेरों पर जा बैठी है
खिड़कियों से अंदर झाँक ताक
अब काम काज करने चली है।
पूरब में धूप खिली है
घरों के छतों पर जा चढी है
सबके सर पर नाच नाच
अब सुस्ताने को चली है।
पूरब में धूप खिली है
छतों से विसर्पित हो फिसल
दूर पेड़ों की फुनगियों से
अब फुसफुसाने को चली है।
पूरब में धूप खिली है
पेड़ की डालों से लटके
झूले पर हल्की पेंगे भर भर
अब जड़ों के तले सोने चली है।
08:33
पूरब में किरण उगी है
खेत खलिहान में जा बिखरी है
ओस की बूंदों को सेंक सुखा
अब खिलने खेलने चली है।
पूरब में किरण उगी है
घर के मूंडेरों पर जा बैठी है
खिड़कियों से अंदर झाँक ताक
अब काम काज करने चली है।
पूरब में धूप खिली है
घरों के छतों पर जा चढी है
सबके सर पर नाच नाच
अब सुस्ताने को चली है।
पूरब में धूप खिली है
छतों से विसर्पित हो फिसल
दूर पेड़ों की फुनगियों से
अब फुसफुसाने को चली है।
पूरब में धूप खिली है
पेड़ की डालों से लटके
झूले पर हल्की पेंगे भर भर
अब जड़ों के तले सोने चली है।
No comments:
Post a Comment