Sunday 7 August 2011

Har Divas Ka Ek Vihan

हर एक दिवस ढल होता अवसान 
पर पुनः होता एक नया विहान 
नित प्रकृति की यह आँख मिचौनी
औ सुख दुःख की पसरी छावनी
जिसमें मानव नित बुनता मकर-जाल
पर नियति दिखाती अलग ही चाल
मोह माया के नागपाश में वह विवश
तिस विवशता पे देती प्रकृति विहंस 
पूर्वजन्म से पुनर्जन्म तक जोड़ा सम्बन्ध 
तिनके-तिनके बिखर गया छंद मंद
पर हठी मानव ने फिर भी न मानी हार
आज पुनः चला समेट कुछ यादें दो चार    



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