Saturday 6 October 2012

सीमांत

ओ मनुपुत्र -

किस सीमा के अंत की बात कर रहा तू,
वह जो तुमने ही बनाई औ तुमने ही तोड़ी?

लक्ष्मण-रेखा तो तुमने ही खीची,
,और सीता हरण कर उसे ही दिया तोड़।

लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल तो तुमने ही बनाई,
औ घुसपैठिये बन उस पे ही की चढ़ाई।

चहारदिवारी तो तुमने ही खड़ी की,
औ तुमने ही उसमें की सेंधमारी।

कहीं उस क्षितिज को तो नहीं देख रहा
जिसने मनु और श्रधा को दिया जोड़?

ओ मनु पुत्र-
उठ जाग और देख

सीमांत पार है असीम गगन
उड़ और जा उसे भेद।

इस पार है अथाह सागर
आ और ले इसकी थाह।





No comments:

Post a Comment