Saturday, 20 August 2016

Nostalgia - बंद मकान

Nostalgia -
बंद मकान
26-07-2016
20:50
मेरा वो मकान
था जो आशियाना मेरा
तुम्हारे गुजरने के बाद भी
गुलजार कर रखा था जिसे,
आज है बंद पड़ा।
दीवारें जो थी करती
मुझसे मूक बातें,
उसकी चुप्पी का शोर
मेरे कानों में है गूँज रहा।
बहरी बन ताले लटका आई,
अपना वो मकान बन्द कर आई।
मकान जो था कभी मुकाम
दीवारें जिसकी थी मेरी ढाल
सर पर छत और पैरों तले जमीं ने
जगाया था वजूद का अहसास।
आज उसी मकान को कब्र बना आई।
अपना वो मकान बन्द कर आई।
मेरे अश्रुसिंचित गमलों में खिले
फूल-फूल, पत्तों पर थी मेरी पहचान
जहाँ खिलती थी मेरे स्पर्श की मुस्कान
वो इंद्रधनुषी मुस्कान बाँट आई
अपना वो मकान बंद कर आई।
वो सारे किरदार, सम्बंध पात्र
सोते जगते जीते थे साथ मेरे
उन्हें परियों की कहानी के अक्षरों
की स्लीपिंग ब्यूटी बना आई।
अपना वो मकान बंद कर आई।
गौरैयों की उदक-फुदक,
कबूतरों का घोँसला
मेरी वीरान महफिल में
था कलरव का समाँ
अपने साथ उन सभी को
देश निकाला दे आई।
बंद मकान उनके नाम कर आई।
मकान जो था आशियाना मेरा
गुलजार जिसे कर रखा था
तुम्हारे गुजरने के बाद भी
आज है बंद पड़ा।

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