Saturday, 20 August 2016

आटे का दूध

आटे का दूध
आटे का दूध
17-06-2016
09:18
गाय, भैंस, बकरी आदि के दूध से तो सभी वाकिफ हैं परन्तु 'आटे का दूध?', सुना नहीं होगा आपने। यहाँ सोयाबीन के आटे से भी बने दूध की नहीं बल्कि खालिस गेहूँ के आटे से बने दूध की बात हो रही है।
सन् १९७३ की बात है। तब वो धनबाद के माउंट कार्मल के पाँचवीं स्टैंडर्ड की छात्रा थी। उसके पिताजी का ट्रांसफर डिगवाडिह से धनबाद हो गया था। बड़े भारी मन से वो बड़े हाते, हरी लॅान वाले आलीशान बँगले से विदा ले धनबाद के हीरापुर के घनी आबादी वाले मोहल्ले में एक किराये के दो मंजिलें वाले मकान में आ जमे। कहाँ वो खुली खुली कालोनी का बड़ा बँगला जहाँ रंगबिरंगे फूलों वाली क्यारियाँ थी, बैडमिंटन कोर्ट था, बड़ा सा मैदान था जहाँ भाइयों और कालोनी के अन्य हमउम्रों के साथ उसने हाकी से गुलेल व गिल्ली डंडे, पतंग उड़ाने तक का खेल खेला करती थी और कहाँ ये इन्डियन पेनिन्सुला की तरह तीन ओर से घरों से घिरा सामने सड़क की ओर खुला मकान जहाँ छत पर सिर्फ छुट्टियों में दुपहर में कंचे खेले जा सकते थे या फिर घर के अंदर कैरम नहीं तो लूडो। दोनों ही खेलों में वह तीन भाई बहन होने के कारण एक अदद पार्टनर की जरूरत को पूरा करने के लिए मम्मी की या नौकर शिवलाल जी की खिदायत करनी पड़ती। शिवलाल में 'जी' की पूँछ लगाना बड़ा अहम् है क्योंकि वो उनकी सारी गतिविधियों पर नज़र रखता और गाहें बिगाहे उनकी चुगली लगाने की धमकी दे उनसे अपनी बात मनवाता। जो भी हो, बड़ा ही काम का आदमी था शिवलाल। कंचे खेलने की सख्त मनाही थी क्योंकि मम्मी के नजर में उसे गली कूचे के लोफर खेला करते थे। सो, दुपहर में उनके सो जाने पर चुपचाप छत पर भाइयों के साथ थोड़ा बहुत खेल लिया करती। वैसे उस खेल में उसकी खासी दिलचस्पी नहीं थी क्योंकि कंचे पिलाने के लिए वो निशाना सही नहीं साध पाती थी।
इस नये मकान के सामने सड़क के उस पार चहारदीवारी से घिरा 'रथ मन्दिर' और ठाकुर बाड़ी था जहाँ से सुबह सुबह घंटियों की आवाज आती। उसके पिताजी बड़े ही धार्मिक स्वभाव के थे और शिव भगवान में गहरी आस्था रखते थे। यहाँ आते ही उनके पूजा पाठ में एक और बढोतरी हुई। सोमवार के सोमवार सुबह सुबह सबों को साथ ले चाँदी के गिलास से शिवलिंग पर दूध चढाना। दूध बह कर कहाँ जाता- इसे जानने के लिए उसका बालसुलभ मन बड़ा व्याकुल होता। पर, संतोषजनक उत्तर कहीं से नहीं मिलता।
दूध वाली उलझन तब और बढ़ी जब एक दिन उसने छत पर से एक छोटी सी भूरी सफेद बिल्ली को बगल के मकान के खपड़-छत पर बैठे देखा। बस उसका मन उसे दूध पिलाने को मचलने लगा। नीचे आई और माँ से उस बाबत बात की तो सीधे स्पष्ट लहजे में ना सुनने को मिला, "नहीं, बिल्ली को दूध पिला कर परकाना नहीं है। दूध इतना फालतू नहीं हुआ है कि बिल्ली को पिलाया जाए। एक दिन पिलाओगी, घर में घुसने लगेगी। देखा पिलाते तो खैर नहीं, समझी"?
वह मन मसोस कर रह गयी। सोचा कि अच्छा जब ये स्नान को जाएंगी तो चुपके से दूध निकाल कर एक कटोरी में डाल छत पर रख आऊंगी। अब न तो उसे पढाई करने में मन लगे न किसी और काम में। आँखें बस मम्मी के पीठ पर मानों चिपक गई। एकाध बार उसकी टकटकी पर मम्मी की सवालिया निगाह उठी तो उसने फटाक से अपनी आँखें नीचे किताब पर झुका ली। जैसे ही मम्मी गुसलखाने में घुसी, उसने लपक कर दबे पाँव धीरे से एक हाथ में कटोरी ले दूसरे हाथ से फ्रिज का दरवाजा खींचा। पर, ये क्या, फ्रिज का दरवाजा मानों जाम हो गया हो। उसने कटोरी को टेबुल पर रख कर दोनों हाथों का जोर लगा कर खींचा। पर, दरवाजा टस से मस नहीं हुआ। शायद मम्मी को उसकी नीयत पर शक हो गया था और इस वजह से फ्रिज को वो लॅाक कर के स्नान करने चली गईं थीं।
बिल्ली से इतना डर! उसे विश्वास नहीं हुआ। तभी उसे कुछ याद आया। आटे की लेई बनाने के लिए जब आटे को पानी में घोलते हैं तो वो दूधिया हो जाता है। बस, इतनी सी बात! उसे अपनी होशियारी पर बड़ा नाज हुआ। आनन फानन में वह रसोईघर में आटे के कनस्तर से चम्मच भर आटे को कटोरी में पानी ले दूध की तरह पतला घोला। हर्रे लगे न फिटकिरी, रंग चोखा! दूध तैयार! इतराती वह सीढियाँ चढ छत के मुंडेर पर आटे के दूध की कटोरी रख आई। बिल्ली अभी भी वहीं बैठी थी। आँखें मींचे कर उसे देख रही थी। मम्मी के गुसलखाने से बाहर निकलने की आवाज आई। वह दनादन सीढियाँ उतरती आई और किताब खोल कर बोल बोल कर पढ़ना शुरू कर दी। पर, उसका ध्यान बिल्ली पर लगा रहा कि बिल्ली ने दूध पीया कि नहीं। दुपहर में मम्मी के सो जाने के बाद के बाद वह पुनः छत पर गई। दूध की कटोरी वहीं पड़ी थी मुंडेर पे। उसे समझ में नहीं आया कि बिल्ली ने दूध चट क्यों नहीं किया जबकि बिल्ली तो दूध पीने के लिए बदनाम है। उसे बड़ी खीझ आई।
शायद बिल्ली को आटे का दूध पसंद नहीं आया। क्या होता जो शिवलिंग पर दूध नहीं चढा बिल्ली को ही पीने को दे देते?
इतने बरस बाद, जब अपने बेटे के घर के पोर्टिको में बिल्ली के बच्चे को म्याऊँ म्याऊँ करते पाया तो फ्रिज खोल कर उसने कटोरे में दूध डाला और आगे बढा दिया। बिल्ली के बच्चे ने कटोरे में सर डाला और दूध चाटना शुरू कर दिया। आटे का दूध लेई बनाने के लिए सही है, पीने के लिए नहीं ।😊

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