Sunday 28 August 2016



अस्तित्व

पात्र - मोहन , कृष्णा , गोपी, मोहन के पिता, स्कूल प्राचार्या
दृश्य १ 
(मोहन , कृष्णा , गोपी दर्शकों की ओर पीठ कर खड़े.... मुड़ते हैं) (बल्ले बल्ले प्यार के दुश्मन हाय हाय। )
मोहन- अरे! चौक गए हमे यहाँ देख कर? जी हाँ, अक्सर ऐसा ही होता है. आप सब हम लोगों को ऐसी ही हैरत और हिकारत भरी नजरों से ही तो देखते हैं. हमे हमेशा समाज के तथाकथित दायरे से बाहर ही तो रखा जाता हैं। जब की इसमें हमारा कोई दोष नहीं की हम सब आपसब से अलग हैं। हमे भुलाऐ नहीं भूलते वो दिन जब हमे घर से, दोस्तों से, समाज से सिर्फ और सिर्फ घृणा ही घृणा मिली और पहना दिया गया हमारे माथे पर जिल्लत भरी ताज।
दृश्य २ 
परिवार में माँ पिता बच्चे को गोद में लिए.... हिजरों का झुण्ड नाचते हुए (सज रही गली गली माँ सुनहरे गोटे में, सुनहरे गोटें में सुनहरे गोटें में  .... )
हिजड़ा : अम्मा तेरे घर तो मेरा बच्चा जन्मा है। ... हम लेने आये है हमे दे दो। . 
माँ: नहीं नहीं ऐसा मैं नहीं कर सकती, मैं अपने जिगर के टुकड़े को नहीं दे सकती 
हिजड़ा : छुपा के क्या करोगी अम्मा। समाज तुझे ताने दे दे मार डालेगा. हमे दे दो... 
 माँ; लोगों को नहीं हमे पालना  हैं... मैं नहीं अपने बच्चे को अलग  सकती... इस बच्चे का कोई कुसूर नहीं.. 
(नेपथ्य से: अरे सुना,! फलाने के यहाँ छक्का जन्मा है....सच में!... है! ये तो बड़े शर्म की बात है )
माँ: मेरी बच्ची मेरी संतान है मैं इसे पालूंगी। मैं इसे अपने दूसरे बच्चों की तरह पढ़ाऊंगी, इसे अपने पैरों पर खड़ा करुँगी। अपने मुहँ अपने पास रखो समाज के ठेकेदारों। 
दृश्य ३. 
पिता: नहीं नहीं, ऐसा न कहिये प्रिंसिपल साहिबा, अगर आप हमारे बच्चे को विद्यालय में दाखिला नहीं देंगी तो उसके भविष्य का क्या होगा ?
प्रिंसिपल: देखिये हम आपसे कह चुके हैं की लड़के या लड़की को ही दाखिला देते हैं, आपके बच्चे के लिए इस विद्यालय क्या पुरे समाज में कोई जगह नहीं।
पिता: आप पढ़ी लिखी है, अगर आप भी नासमजों जैसा व्यव्हार करेंगी तो हमारा समाज कैसे सुधरेगा ?
प्रिंसिपल:मुझे आप समाज सुधारक बनने का सुझाव न दें, मैं तो कहती हूँ की ऐसे बच्चों के पैदा होते ही इस समुदाय के लोग उसे ले जाते हैं. आप इस बच्चे को इन्ही के सुपुर्द क्यों नहीं कर देते?
पिता: कैसी बातें करती हैं आप अगर बच्चा विकलांग पैदा होता है तो क्या हम उसे किसी और को दे देते हैं? नहीं ना? तो फिर मेरे बच्चे में क्या कमी है जो मैं उसे किसी और को दे दूं? मुझे आप से ये उम्मीद नहीं थी.
प्रिंसिपल: लीजिए ये नामांकन फार्म।  भरिये इसे. क्या भरेंगे इसमें लड़का या लड़की? मैं आपके बच्चे को किस श्रेणी में डालूँ? है कोई जवाब?
पिता: तो बना डालिये एक और श्रेणी। समावेशी शिक्षा, इंक्लूसिव एजुकेशन की नीति क्या बस कागज पर उगे, रचे नियम मात्र हैं? लानत भेजता हूँ समाज के बने इन उसूलों और नियमों पर।
प्रिंसिपल: बड़े आये नियमों की बात करने। आप जाये मुझे और भी बच्चों के काम करने दें
दृश्य ३
मोहन: मेरे माता पिता का सम्मान छलनी छलनी हो जाता लोगों के तीखे व्यंग वारों से और मैं हताश हो,अपने जन्म से जुड़े अनगिनत प्रश्नो के हल ढूंढता।
कृष्णा: (हाथ चमकाते हुए) हाय हाय! तू इनलोगो से इतनी देर से क्या बातें क्र रहा है मोहन? अरे, ये तो बहरे हैं बहरे कान वाले बहरे। इन्हें अपने दर्द की आवाज सुनाई देती हैं, हमारी नहीं। अगर जो मेरे परिवार ने मुझे नहीं त्यागा होता तो आज मैं भी तुम्हारी तरह सम्मान की जिन्दगी जी रहा होता.
मोहन: क्यों क्या हुआ था तेरे साथ ? बता, बाटने से दुःख हल्का होता है.
कृष्णा: मेरा जन्म तो शायद मेरे परिवार के लियेजैसे दुःख और शर्मिंदगी का सैलाब ले कर आया था मोहन. दो दिन का भी नहीं था मैं कि जब मेरे मा बाप ने मुझे उन लोगों को सौप दिया जिनका मुझे से कोई रिश्ता नहीं था. अपने पराय हो गए और पराये मेरे अपने।  मैं कभी कभी सोचता हूँ रे कि तू कितना भाग्यवान है जिसे अपनों का प्यार और साथ मिला।  मैं सदा तरसता ही रहा कि कोई मुझे अपना भी कहें।
मोहन (दर्शक से) ये सच कह रहा है. हम लोग चाहे कैसे भी दीखते हैं पर हमारा दिल भी मा की ममता और पिता के प्यार पाने को तरसता है।  ऐसी हिकारत भरी तिरस्कृत जिन्दगी भला किसे अच्छी लगती है?
कृष्णा: मेरा भी मन करता है की मैं माँ की गोद में सर रख कर थोड़ी देर के लिये ही सही अपना सारा गम भूल जाऊं। क्या आप मुझे मेरी माँ से मिलवा सकते हैं ?
(मैं कभी दिखलाता नहीं पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ, क्या इतना बुरा हूँ मैं माँ ?)
(गोपी का प्रवेश) हेलो हेलो, क्या चल रहा है भाई? मोहन क्या तुम्हे पता चला- मैं पंचायत चुनाव में जीत गया , मैं मुखिया बन गया।  अरे तुम्हे क्या हुआ कृष्णा? क्यों रो रहे हो?
मोहन: बधाई हो गोपी, पर ये सब कैसे हुआ? सच में, समाज का ये सुखद बदलाव हम जैसे लाखों लोगों की जिंदगी का रुख ही बदल देगा। सरकार की नई नीति और योजनाओं से हमे समाज में बराबर समान और अधिकार मिलेंगे
गोपी: अब तो विद्यालयों में भी हमे दाखिला देने से इनकार नहीं कर सकते. हम पढ़ लिख कर अपने सारे ख्वाबों को पूरा कर सकेंगे। अब हमे शर्म से मुहँ छुपाने की जरूरत नहीं।
कृष्णा:पर सरकार से भी पहले समाज को हमे अपनाना चाहिए। हम पर हंसना छोड़ हमारा हौसला बढ़ाना चाहिए। हमे अपने परिवार से जुदा नहीं करना चाहिए। हमारा जन्म एक सजा नहीं होनी चाहिए क्योंकि हमारा गुनाह ही क्या है?
माता: बेटा कृष्णा दिल छोटा न कर. मैं तेरी माँ बनूँगी। देर ही से सही पर मैं दूंगी तुझे प्यार। तू मेरे आँचल में सोना. आ मेरे पास आ बेटा।
(कृष्णा माता के पैरो से लिपट जाता है) माँ मेरी माँ
गोपी: अरे हाँ मोहन भाई , अपना वो किस्सा जरा सुनाइए जब आपको UNO में सम्मानित किया गया।
पिता: अरे बेटा, उस पल ने तो गर्व से मेरी छाती ऊँची कर दी. जिस बच्चे को किन्नर समाज हमसे छीनने आया था, जिसे विद्यालय ने दाखिला देने से इनकार कर दिया था- उसी औलाद ने UNO जाकर अंतर्राष्टीय स्तर पर मेरा ही नहीं देश का भी नाम रोशन कर दिया,
मोहन: मैं जैसे ही वहां पंहुचा मुझे अपने भारत का तिरंगा लहराता दिखा। मैंने दौड़ कर तिरंगे को छू लिया, मेरा रोम रोम पुलकित हो उठा. मैं धन्य हो गया, मुझे जो सम्मान वहां मिला काश की अपने इस जन्मभूमि पर मिला होता पहले, मैं अपनी उस अनुभूति को शब्दों में बयान नहीं कर सकता।  मुझ जैसा हर शख्स आसमान की ऊंचाई को छूने की ताकत रखता है, जरुरत है तो बस खुली बांह और खुले ह्रदय से अपनाने की , हम आप जैसे ही है. हमारी पूरी बिरादरी इज्जत और आत्मसम्मान पाने की हकदार है. सभी अपने अस्तित्व की तलाश में हैं. क्या आप हमे हमारा अस्तित्व देंगे?
                                                              (धन्यवाद )
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