Thursday, 25 January 2018


आँचल 


12-06-2017
14:57

(आधुनिकिकरण के दौर में कई विलुप्त होते एहसासों- कशीदा किया रूमाल, फाउन्टेन पेन की स्याही से सनी उंगलियाँ, सिलबट्टे की घर्र घर्र, इत्यादि में एक एहसास 'आँचल' तले ममत्व का भी है।) हालांकि 'ममत्व' किसी परिधान का मोहताज नहीं। पर, यूँ ही एक बैठे ठाले की चिंतन 😊 

"आँचल विलुप्त होती तेरी कहानी"-

वह आँचल जीर्ण हो चला और मैं सी भी न सका।
उस विस्तृत आँचल के ओर-छोर को मैं माप भी न सका।

भूख मुझे जब लगती, अपने आँचल से ढक दूध पिलाती।
नींद मुझे जो न आती, आँचल से ढक मीठी लोरी सुनाती।

गरमी जो मुझे लगती, वह अपने आँचल से पंखे झलती।
थक हार जब भी मैं आता, आँचल से मुख मेरा पोंछ देती।

कट फट जो जाता, झट आँचल के कोने से मरहम पट्टी कर देती।
ठंड मुझे जो लगती, आँचल से ढक मेरे तन को गरमी देती।

बीमार जो मैं पड़ता, ईश्वर से आँचल फैला विनती करती।
झगड़ा मैं करता और वो मुझे बचाने आँचल कस खड़ी रहती।

इधर नाक मेरी बहती और उधर आँचल उसकी गंदी होती।
मैं परदेश गया, वो मेरी फोटू आँचल से पोंछ चुम लेती।

वह आँचल जीर्ण हो चला और मैं सी भी न सका,
उस विस्तृत आँचल के ओर- छोर को मैं न माप सका।

आँचल, विलुप्त होती तेरी कहानी...

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