तुम क्या हो?
तुम अब में तब हो
तुम कहाँ में कब हो
तुम सब में रब हो.
तुम चित्रकार की कूँची हो,
तुम शुभ्र, सच, शुचि हो,
हर ह्रदय में बसी सुरुचि हो.
तुम कलाकार का सृजन हो,
तुम कवि ह्रदय का गुंजन हो,
तुम नाटककार का मंचन हो.
तुम बांसुरी की मधुर तान हो,
तुम पक्षियों का कलरव गान हो,
तुम नित नवीन विहान हो.
तुम प्रहरी सीमा की जीत हो,
तुम करुण ह्रदय के गीत हो,
तुम निरंतन में अंतर रीत हो.
तुम शिशु की निश्चल मुस्कान हो,
कर्मभूमि के अडिग किसान हो,
सारे अवसादों के अवसान हो.
तुम निराकार में साकार हो,
तुम रण क्षेत्र में धनुष्तंकार हो,
पर हाहाकार में भी शान्ताकार हो,
तुम कण-कण में समाहित हो,
तुम पल-पल में प्रवाहित हो,
इक मधुर निनाद, संगीत हो.
तो, यह न सोचो तुम क्या हो,
तुम हर सोच की इक बयां हो.
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