रात विचारों की जननी है और निद्रा हमारी दिन भर की कठीन मेहनत का पुरस्कार. फिर भी यह निद्रा कभी-कभी हमसे जिद्दी बच्चे की तरह रूठ जाती है. जितना मनाओ वह उतना ही हमे से दूर भागती जाती है-
आज निद्रा फिर छल कर गयी,
रात बस आँखों में ही कट गयी.
कभी कस्तूरी मृग सी कुलाँचे भरती,
यादोंके गहन वन में खो जाती,
छलावा बन मुझको छल जाती.
कभी तितली सी फूल-फूल पर जा बैठती,
मुठ्ठियों में कैद करना चाही तो कांटे जा चुभे,
आँखों का काजल आंसू के साथ रात्रि की कालिमा में जा मिले.
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