PAGES FROM NEW JERSEY
THURSDAY, 4 JUNE
It's a day of speculation for me. It seems I am done away with writing simply about park, people and surroundings.
आज कुछ मन अनमना सा है.
डायरी के इन पन्नों पे,
होती हैं इकतरफा बातें,
लिखती भी मैं ही हूँ,
पढ़ती भी मैं ही हूँ।
तस्वीरों को निरख निरख,
आँखें अब चली है थक.
सो, आओ हरी पार्क में,
वृक्षों की सघन छाँह तले,
बेंच पर बैठ, हाथों में हाथ डाल,
करें कुछ छोटी-लम्बी बातें,
पूछे एक दूसरे का हाल चाल।
आँखें मुंद, करें चेहरे पर
महसूस ठंडी हवा का झोंका
पत्तों की सरसराहट और
चिड़ियों की चहचहाहट,
बरखा की कुछ बुँदे अंजुली में भर,
खिली धुप की कुछ गर्माहट बटोर,
आओ, चलें करें कुछ बातें।
कुछ अपनी तुम कहो, कुछ मैं कहूँ,
कुछ मेरी तुम सुनो, कुछ मैं सुनूँ।
इतने में ही तो,
अब थमने को है पवन,
तिरछी हो चली है किरण।
क्या सुना तुमने भी कोलाहल?
चीखते समुद्री गल का कोलाहल?
बीतने से पहले,
इन लम्हों को,
अपनी मुट्ठी में थाम,
चलो मिल लेते हैं गले
अब हो चली है शाम।
आज न जाने क्यों-
मन कुछ अनमना सा है।
THURSDAY, 4 JUNE
It's a day of speculation for me. It seems I am done away with writing simply about park, people and surroundings.
आज कुछ मन अनमना सा है.
डायरी के इन पन्नों पे,
होती हैं इकतरफा बातें,
लिखती भी मैं ही हूँ,
पढ़ती भी मैं ही हूँ।
तस्वीरों को निरख निरख,
आँखें अब चली है थक.
सो, आओ हरी पार्क में,
वृक्षों की सघन छाँह तले,
बेंच पर बैठ, हाथों में हाथ डाल,
करें कुछ छोटी-लम्बी बातें,
पूछे एक दूसरे का हाल चाल।
आँखें मुंद, करें चेहरे पर
महसूस ठंडी हवा का झोंका
पत्तों की सरसराहट और
चिड़ियों की चहचहाहट,
बरखा की कुछ बुँदे अंजुली में भर,
खिली धुप की कुछ गर्माहट बटोर,
आओ, चलें करें कुछ बातें।
कुछ अपनी तुम कहो, कुछ मैं कहूँ,
कुछ मेरी तुम सुनो, कुछ मैं सुनूँ।
इतने में ही तो,
अब थमने को है पवन,
तिरछी हो चली है किरण।
क्या सुना तुमने भी कोलाहल?
चीखते समुद्री गल का कोलाहल?
बीतने से पहले,
इन लम्हों को,
अपनी मुट्ठी में थाम,
चलो मिल लेते हैं गले
अब हो चली है शाम।
आज न जाने क्यों-
मन कुछ अनमना सा है।
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