ठहरी तारीख
३० जून
विद्यालय से आ कर अभी संधया में इस गाने को सुन रही हूँ जिसे आप अक्सर मुझे समक्ष बिठा गुनगुनाया करते थे " तेरे बिन सूने नयन हमारे...निंदिया न आये अब मेरे द्वारे ".
"जग में रहा मैं जग से पराया, साया भी तेरे मेरे पास न आया "- आज छह वर्ष बीत चले. जीवन की उतार चढ़ाव ने मुझे मजबूत किया या कमज़ोर किया- अब तक समझ न पायी। संघर्ष, संघर्ष, संघर्ष ही पाया - पलट के जब भी देखा। बहुत दूर तक नहीं देखती क्योंकि क्षणभंगुरता से काफी राब्ता हो चूकी है।
३० जून
विद्यालय से आ कर अभी संधया में इस गाने को सुन रही हूँ जिसे आप अक्सर मुझे समक्ष बिठा गुनगुनाया करते थे " तेरे बिन सूने नयन हमारे...निंदिया न आये अब मेरे द्वारे ".
"जग में रहा मैं जग से पराया, साया भी तेरे मेरे पास न आया "- आज छह वर्ष बीत चले. जीवन की उतार चढ़ाव ने मुझे मजबूत किया या कमज़ोर किया- अब तक समझ न पायी। संघर्ष, संघर्ष, संघर्ष ही पाया - पलट के जब भी देखा। बहुत दूर तक नहीं देखती क्योंकि क्षणभंगुरता से काफी राब्ता हो चूकी है।
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