Sunday, 1 September 2013

EX-GRATIA


The scene in 'Satyagraha'(movie) - A supporter of a minister, congratulating the mourner at the declaration of the payment of Ex-gratia, just ignited a spark to fire the words from my pen-

एक्सग्रेसिया की मिठाई 

क्या एक्सग्रेसिया
की रट है लगा रखी!
कोई लौटरी तो
नहीं है मेंरी खुली ?

क्या असामयिक मौत
का जश्न मुझसे हो मांगते?
एक विषबुझा नश्तर ही
उतार दो मेरे सीने में।
तुम्हारे जलते सीने
को बड़ी ठंडक मिलेगी।

क्या प्रिय से विछोह की
मिठाई मुझसे हो मांगते?
जश्ने दावत सभी दे दूंगी
मिठाइयाँ भर पेट खा लेना।
पेट पर संतोष भरा हाथ फेर,
लम्बी डकारें भी ले लेना।

हाँ, भूलना मत-
बस थोड़ी जगह बचा रखना
खारे पानी के लिए
भोजन सुपाच्य हो जाता है
बदहजमी नहीं होगी।

और,जाते जाते-
शुभकामनाओं के प्रत्यर्पण मुझे
वो  इन्तजार की मीठी शाम
खुशबू भरी चांदनी रातें
दे जाना मत भूलना...

कृपण बन गए न?
हुह्ह... जले पर नमक
ही छिडक सकते हो !
और  कृपणता ही
तो तुम्हारी पूंजी है।












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