मौन भरा संवाद
सुनो-
जों ये मौन तुम्हे खल जाता है,
तो ये बकबक क्यूँ असह्य हो जाता है?
मन ही तो है- मानव मन,
कभी उद्वेलित, कभी आह्लादित,
कभी विचलित, कभी व्यथित,
बस डूबते उतराते एक किनारा तलाशता है.
क्यूँ, तुम्हारा मन कुछ अलग है क्या?
जो ये मौन और बकबक रास नहीं आता.
सुनो-
जों ये मौन तुम्हे खल जाता है,
तो ये बकबक क्यूँ असह्य हो जाता है?
मन ही तो है- मानव मन,
कभी उद्वेलित, कभी आह्लादित,
कभी विचलित, कभी व्यथित,
बस डूबते उतराते एक किनारा तलाशता है.
क्यूँ, तुम्हारा मन कुछ अलग है क्या?
जो ये मौन और बकबक रास नहीं आता.
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