प्रेम पथिक या पथभ्रमित
तू प्रेम पथिक या मैं पथभ्रमित,
युग युगान्तेर से निरंतरित ,
रही ये कथा सदा अनकथित .
अध्यात्म साधना थी या ज्ञान सुधा,
क्या चक्षु पिपासा थी जिससे मन जा बंधा,
रह गयी ह्रदय में सदा ये दुविधा .
कुछेक छ्रण रहे जिन्हें कर हृदयंगम,
क्या संगम....क्या विहंगम ,
वो मोह क्या कभी हो पायेगा भंग?
तू प्रेम पथिक या मैं पथभ्रमित,
युग युगान्तेर से निरंतरित ,
रही ये कथा सदा अनकथित .
अध्यात्म साधना थी या ज्ञान सुधा,
क्या चक्षु पिपासा थी जिससे मन जा बंधा,
रह गयी ह्रदय में सदा ये दुविधा .
कुछेक छ्रण रहे जिन्हें कर हृदयंगम,
क्या संगम....क्या विहंगम ,
वो मोह क्या कभी हो पायेगा भंग?
No comments:
Post a Comment