Thursday, 18 August 2011

MITRTA

इक अदद मित्र चाहिए 

कितनी अजीब बात है-
इर्द गिर्द पहचाने अनपहचाने चेहरों का इक सैलाब है,
पर, आज मुझे मिली एक अदद मित्र ढूंढने की सलाह है.

मित्रता के बाज़ार में अकेले असुरक्षित हैं वो खड़ें,
पर, क्या खूब, मित्रता की अहमितयता आज मुझे पे ही जता गए 

सो, मित्र ने ही मित्रता से आज मेरी कुछ  पहचान करा दी,
मित्रता के बाज़ार में लगे बोली से हमें वाकिफ करा दी.

उधर मुस्कराहट की कीमत क्या लगाई गई 
इधर मानसिक बौद्धिक क्षमता जाँची परखी गयी .

मित्रता की तो पूरी बखिया ही उधड़ गयी,
जो उन्होंने जिंदगी के फलसफे पर बात की.

हमदर्द, हमसफ़र बनने का जब दम भरा,
मित्रता का मानों जनाजा ही निकल गया.

 जिसे है रंज मित्रता के घाटे नफे की,वो तो खुद ही है खाली,
मुझ से ही ले चढ़ा गया मुझपे उधार, कितनी ये बात निराली 

हमें भी जिंदगी से न कोई गिला, इस हाथ दिया उस हाथ लिया,
वो जो खुश है इस भ्रम में तो उस ख़ुशी में बस साथ हो लिया


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