Sunday, 29 May 2016

छह बरस


तुम नहीं रहे इन छह बरसों में
पर हाँ,
कविता की चंद पंक्तियों में
तुम्हारे होने का अहसास रहा -
"वो भार दिए धर कंधों पर
जो रो रो कर हमने ढोए"।


उन अनगिनत पन्नों पर
थके हाथों से
हस्ताक्षर उकेरना
और,
चेक लेने के क्षण,
दिलासे के बोलों का
सुर बदलना।


हाँ,
कविता की चंद पंक्तियों में
तुम्हारे होने का अहसास रहा -
"महलों के सपनों के भीतर
जर्जर खंडहर का सत्य भरा।"


मैं और मेरा नकारा सा
आहत वजूद
भरते रहे एकला चलो रे
का औपचारिक नारा।
झूठ क्यों कहूँ कि
पाया नहीं स्वयं का दम।


पर हाँ,
कविता की चंद पंक्तियों में
तुम्हारे होने का अहसास रहा
"उर में ऐसी हलचल भर दी
दो रात न सुख की हम सोए।"







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