23-09-2015
01:18 PM
क्या बताऊँ कि तुम मेरे लिए क्या हो-
कि मेरे गोद में पड़ी खुली किताब की
कुछ रेखांकित शब्द व पंक्तियां हो।
कि पौ फटती भोर की हल्की धुंध में
फ्लाई ओवर की सुनहरी स्ट्रीट लाइट हो।
अब क्या बताऊँ कि तुम मेरे लिए क्या हो।
कि नयनों के कोर से खिलखिलाती हँसी
का अल्हड़ सतरँगा आब कनी हो।
कि राह चलते फुटपाथ पर चाय की दुकान
में रेडियो पर बजती पुरानी गजल हो।
अब क्या बताऊँ कि तुम मेरे लिए क्या हो।
कि शरद् प्रात:कालीन सैर के वक्त पगडंडी
के किनारे उगे घास पर ठहरी ओस की बूंद हो।
कि पत्राच्छादित तरुवर की हरी छतरी से छन,
तन तक पहुँचती धूप की नरम गरमाहट हो।
अब क्या बताऊँ कि तुम मेरे लिए क्या हो।
01:18 PM
क्या बताऊँ कि तुम मेरे लिए क्या हो-
कि मेरे गोद में पड़ी खुली किताब की
कुछ रेखांकित शब्द व पंक्तियां हो।
कि पौ फटती भोर की हल्की धुंध में
फ्लाई ओवर की सुनहरी स्ट्रीट लाइट हो।
अब क्या बताऊँ कि तुम मेरे लिए क्या हो।
कि नयनों के कोर से खिलखिलाती हँसी
का अल्हड़ सतरँगा आब कनी हो।
कि राह चलते फुटपाथ पर चाय की दुकान
में रेडियो पर बजती पुरानी गजल हो।
अब क्या बताऊँ कि तुम मेरे लिए क्या हो।
कि शरद् प्रात:कालीन सैर के वक्त पगडंडी
के किनारे उगे घास पर ठहरी ओस की बूंद हो।
कि पत्राच्छादित तरुवर की हरी छतरी से छन,
तन तक पहुँचती धूप की नरम गरमाहट हो।
अब क्या बताऊँ कि तुम मेरे लिए क्या हो।
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