Sunday, 5 April 2015

कुहे ने पकड़ी जोर 

02-12-2014
08:38

कल नीले नभ पर फैली
बादलों की झीनी चुनर
शीत और सूरज के बीच
लगी रही दिन भर एक होड़
कल का दिवस होगा मोर।

बाजी की मध्यांतर हुई
जब शाम ढल रात बनी
शीत की हुई पौ बारह
फैलायी कुहे की जर्द चादर
जब हुई प्रात: एक सर्द भोर।

शीत से रहे रात भर गीले
ठंड की मार से दुहरे
पेड़ पौधों ने की मीटिंग
सूरज की लेनी है क्लास,
क्यूँ कक्षा में की लेट प्रवेश?

हमीं से भूख हड़ताल करवा 
दिखाता अपना अफसराना तेवर 
पल में तोला, पल में माशा 
कभी तो है शोला बरसाता
कभी कुहे से ही डर जाता। 

उसकी डंड बैठक करवाएंगे
तब जाकर कहीं हम चैन पाएंगे
कल से ना करना ऐसी गलती
वरना ठंड की बढ़ेगी हिमाकत
और हमारी बजेगी दाँत कटाकट।

आज दिसंबर की दूसरे दिन
ठंड ने पकड़ी जोर।

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