Tuesday, 7 April 2015

बिस्तर नींद की बेवा बन,
आँखों में गीली पसर गयी है।

Sunday, 5 April 2015

Wished I had clicked those moments, little, lovable moments like the little unsteady steps of a toddler!Though there were painful moments too that still moisten my eyes. I think I had freed my soul from the pain but the tear drops clinging to my eyes give me away. It's not that looking back is my habit yet they enter so stealthily and unsparingly that I am left with a feeling of sad vulnerability.

   
देहरी के इस पार


देहरी के इस पार वो थी
और था उसके रिश्तों का संसार।
देहरी के इस पार वो थी
पर उस पार था रिता
उसके मन का संसार।








कुहे ने पकड़ी जोर 

02-12-2014
08:38

कल नीले नभ पर फैली
बादलों की झीनी चुनर
शीत और सूरज के बीच
लगी रही दिन भर एक होड़
कल का दिवस होगा मोर।

बाजी की मध्यांतर हुई
जब शाम ढल रात बनी
शीत की हुई पौ बारह
फैलायी कुहे की जर्द चादर
जब हुई प्रात: एक सर्द भोर।

शीत से रहे रात भर गीले
ठंड की मार से दुहरे
पेड़ पौधों ने की मीटिंग
सूरज की लेनी है क्लास,
क्यूँ कक्षा में की लेट प्रवेश?

हमीं से भूख हड़ताल करवा 
दिखाता अपना अफसराना तेवर 
पल में तोला, पल में माशा 
कभी तो है शोला बरसाता
कभी कुहे से ही डर जाता। 

उसकी डंड बैठक करवाएंगे
तब जाकर कहीं हम चैन पाएंगे
कल से ना करना ऐसी गलती
वरना ठंड की बढ़ेगी हिमाकत
और हमारी बजेगी दाँत कटाकट।

आज दिसंबर की दूसरे दिन
ठंड ने पकड़ी जोर।

Wednesday, 1 April 2015

स्याह निशान 

30-03-2015
20:04

पता नहीं कब कैसे उसकी बाँयी बाँह पर कोहनी के ऊपर किसी भोथर कोने से चोट  लगी और उस जगह चवन्नी सा बड़ा निशान उभर आया। उसने उस निशान पड़े जगह को उंगलियों के पोरों से दबाया। उसे हल्का सा दर्द महसूस हुआ। सर झटक वह पुन: परीक्षा की उत्तरपुस्तिकाओं को जाचँने में जुट गई। 

पर, दर्द हर बार दस्तकें देता रहा जब जब, उसकी सहशिक्छिकाओं  ने उस स्याह निशान पर प्रश्नों की लम्बी कतार लगाई-
"ये क्या है, कैसे लगी, कहाँ लगी, कब लगी? कैसे चलती हो? जरा सभँल कर चला करो।"

हर प्रश्न के साथ स्मृतिचिह्नों के सुदूर प्रांतों की यात्रा प्रारंभ होती और तत्क्षण ही दूसरे प्रश्न पर समाप्त होती। 

अंतत: उसने ऊबे से लहजे में कह डाला,  "कहाँ, क्यूँ, कैसे लगी? कमरे की चारदीवारी के कोने से टकराते रहती हूँ , और क्या? उसी में कहीं लग गयी होगी और निशान पड गए।"

सबके प्रश्न जबान से हट आँखों में सिमट तो गए पर उसके उत्तर पर टीके टिप्पणियों की बौछारें होने लगी- इतने तल्ख जवाब किसने मांगे थे? सीधे से कह देती कि कोने से चोट लग गयी थी।"  

उसने स्याह पड़े निशान पर अपने आँचल के पल्लू को फैला कर ढक दिया।