सीमांत
ओ मनुपुत्र -
किस सीमा के अंत की बात कर रहा तू,
वह जो तुमने ही बनाई औ तुमने ही तोड़ी?
लक्ष्मण-रेखा तो तुमने ही खीची,
,और सीता हरण कर उसे ही दिया तोड़।
लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल तो तुमने ही बनाई,
औ घुसपैठिये बन उस पे ही की चढ़ाई।
चहारदिवारी तो तुमने ही खड़ी की,
औ तुमने ही उसमें की सेंधमारी।
कहीं उस क्षितिज को तो नहीं देख रहा
जिसने मनु और श्रधा को दिया जोड़?
ओ मनु पुत्र-
उठ जाग और देख
सीमांत पार है असीम गगन
उड़ और जा उसे भेद।
इस पार है अथाह सागर
आ और ले इसकी थाह।
ओ मनुपुत्र -
किस सीमा के अंत की बात कर रहा तू,
वह जो तुमने ही बनाई औ तुमने ही तोड़ी?
लक्ष्मण-रेखा तो तुमने ही खीची,
,और सीता हरण कर उसे ही दिया तोड़।
लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल तो तुमने ही बनाई,
औ घुसपैठिये बन उस पे ही की चढ़ाई।
चहारदिवारी तो तुमने ही खड़ी की,
औ तुमने ही उसमें की सेंधमारी।
कहीं उस क्षितिज को तो नहीं देख रहा
जिसने मनु और श्रधा को दिया जोड़?
ओ मनु पुत्र-
उठ जाग और देख
सीमांत पार है असीम गगन
उड़ और जा उसे भेद।
इस पार है अथाह सागर
आ और ले इसकी थाह।
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