इन्तजार
हम सोये कहाँ
बस खोये हैं
रात-रात भर
जाग कर
जब भोर में सोये हैं
तो अपना आपा
आपके इन्तजार में
खोये हैं
क्या विस्मृत करूँ
उन स्मृतियों को
जब खुद को आप में
खो कर
सार्थकता में निरर्थकता को
खोये हैं
और पुनर्मिलन की
आस को संजोये हैं .
हम सोये कहाँ
बस खोये हैं
रात-रात भर
जाग कर
जब भोर में सोये हैं
तो अपना आपा
आपके इन्तजार में
खोये हैं
क्या विस्मृत करूँ
उन स्मृतियों को
जब खुद को आप में
खो कर
सार्थकता में निरर्थकता को
खोये हैं
और पुनर्मिलन की
आस को संजोये हैं .
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