अस्ताचल सूरज
वो अस्ताचल सूरज,
ढला सारे तेज को तज.
शनै: घिरती जा रही संध्या,
मानो हो एक मौन बंध्या
कातर दृष्टी ने मांगी उत्तर
क्या कल का दिवस भी जायेगा निरुत्तर ?
जीवन की सरिता के तल पड़ा पत्थर,
सुख औ दुःख से मंज बना पारस.
छु जिसे कई लोहा हुआ सोना ,
पर वो खुद तो रहा घाट का ही पत्थर.
मूक बधिर सा खोज रहा ये उत्तर,
क्या कोई मूर्तिकार गढ़ेगा मुझेमें इक नयी मूरत?
Ek sabse bara murtikar hai har inshan ko mmoka deta hai aap kaisee murat banana chahtey hai. Let us connect ourself with greatest artisan.
ReplyDeleteThanks for such an inspiring thought...!
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