Friday, 9 September 2011

CRISIS-TRIAL OF OUR SOUL

मधु-आत्म परिचय 

मैं मधुरिमा का लघु स्वरुप 'मधु',
क्या दूँ स्वत: मैं आत्म परिचय 
मधु से हुए कई अवतरित लग नए प्रत्यय 

बच्चन की रचनाओं में तो मधुशाला की मधुबाला,
(इस पार प्रिये मधु है, तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा)
परन्तु, 
आज किसी ने कहा हूँ मैं विषमय मधु प्याला .
तो उनको हैं मेरा शत नमन ,
जिन्होंने किया जो मेरा नविनामकरण.

अब तक सोच भ्रमित थी -
हूँ कहीं मैं मधुप्रभात की मधुरागिनी 
तो कहीं मधुयामिनी की शीतल चांदनी.

हूँ कहीं किसी अधर पर ठहरी मधु मुस्कान 
तो कहीं किसी कंठ से फूटा इक मधुगान 

कहीं मधुपतझर बन लाती मैं मधुमास 
तो कहीं मधुश्वास बन जगाती जीने की नयी आस.

आज,
कैसे जला अपनी मधुकाया दूँ मैं औरों को मधुछाया 
कैसे मिटाऊँ उन विषादों को बन कर मैं मधुमाया.

किस मधुबर्षा से सिंचित करूँ मैं प्रकृति की ये ताप,
किस मधुहास से मुक्त करूँ मैं नियति का ये शाप .

किन मधुस्वपन से आज भरूँ मैं ह्रदय के ये छाले,
जब मधुरिमा को मधु से अवतरित ये रूप ही चुरा लें 

Tuesday, 6 September 2011

अस्ताचल सूरज 

वो  अस्ताचल सूरज,
ढला सारे तेज को तज.
शनै: घिरती जा रही संध्या,
मानो हो एक मौन बंध्या 
कातर दृष्टी ने मांगी उत्तर 
क्या कल का दिवस भी जायेगा निरुत्तर ?

जीवन की सरिता के तल पड़ा पत्थर,
सुख औ दुःख से मंज बना पारस.
छु जिसे कई लोहा हुआ सोना ,
पर वो खुद तो रहा घाट का ही पत्थर.
मूक बधिर सा खोज रहा ये उत्तर,
क्या कोई मूर्तिकार गढ़ेगा मुझेमें इक नयी मूरत?