Sunday, 24 April 2011

Raktabhit Gulmohar

The red murmur of Summer




प्रचंड होती ज्यों-ज्यों ग्रीष्म चहुओर
त्यों-त्यों प्रखर होता रक्ताभित गुलमोहर, 
नख से शिख अब अमलतास के फूल 
वृक्ष की शाख-शाख पर गए हैं झूल,
वो नव किसलय अब वसंतोप्रांत
है धूल धुसरित और क्लांत,
विकल ह्रदय वर्षा प्रतीक्षित 
आस भरे नयन नभ पे लक्षित,
उठे संध्या में जब मेघ घनघोर 
पवन बहा ले जाती उन्हें छितिज छोर,
प्रकृति के शैशव पर चढ़ा ये यौवन 
गिन रहा अब पतझर के दिन मौन.

2 comments:

  1. Well written...Mom. You have a good vocabulary in Hindi.

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  2. Sahi kahun to ye shrey tumhe jata hai,you are my pathfinder and the torchbearer.

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