शोक सभा की मंत्रणा
स्कूल पहुँची तो ऑफिस के बाहर एक भीड़ जुटी दिखी- छिछली भीड़, उतरे, चिंतित चेहरों की फुसफुसाती भीड़। विद्यालय में बीते कुछ महीनों में घटी कई असामान्य घटनाओं से मन आशंकित हुआ। सो, आगमन की हस्ताक्षर पुष्टि पश्चात् भीड़ से पूछा - क्या बात है, सब कुशल-मंगल तो है? रात में फिर कुछ अनहोनी तो नहीं घटी ? (कल-परसों वैसे कड़ाके की ठण्ड पड़ी थी.)
भीड़ से एक धीमी आवाज आयी-" आफिस कर्मचारी पासवान .…"
मैनें मष्तिष्क पर जोर डाला-"ऐं, कौन से पासवान जी?"
-जी, वो पतली मूछों वाला सांवला, दुबला, छोटा पासवान।
-अरे, हाँ.… क्या हुआ उन्हें? कल तक तो अच्छे भले थे।
(मष्तिष्क में एकाएक उनके डगमगाते कदम और लटपटाई अस्प्ष्ट शब्द कौंध गए- " हम तो सबके लिए है... काम से काम… सब खुश हम भी खुश... क्यों है न, मैडम?")
-नहीं, नहीं, उसे कुछ नहीं हुआ... वो उसका पुत्र बेचारा, च्च च्च... उसकी छुट्टी की अर्जी आयी है। वो बेचारा तो भागे भागे अपने घर बरौनी गया है।
घंटी बजी और कुछ ने स्टाफ-रुम की ओर रुख किया, कुछ ने अपनी कक्षाओं की ओर , बचे कुछ विद्यालय प्रांगण में खिली चटकी धुप में शोक सभा की मंत्रणा के लिए खड़े रहे ( चार दिनों बाद जो धुप निकली थी). विचार विमर्श कर ये प्रस्तावना पारित हुआ कि अंतिम कालांश में शोक सभा का आयोजन होगा। पर, क्षेत्रीय कार्यालय से डिप्टी कमिश्नर के आगमन के साथ उस पारित प्रस्ताव ने हारे जुआरी की तरह किया प्रस्थान।
खैर संध्या हुई और बच्चों की छुट्टी और डिप्टी कमिश्नर के प्रस्थान के बाद स्टाफ-रूम में पुन: शोक सभा के पारित प्रस्ताव ने किया आगमन -" चलिए भाई, अब पासवान के पुत्र के असमय मृत्यु पर हम सब दो मिनट का मौन रख उसकी आत्मा की शांति और शोक संतप्त परिवार के लिए प्रार्थना करें।"
सभी गम्भीर मुद्रा में खड़े हो गए। पर तभी किसी ने प्रश्न किया-" उम्र क्या थी?"
-उम्र? अरे, अभी तो उसका विवाह ही तय हुआ था।
कई आहें एक साथ उभरी- " हाय बेचारे को जवानी में ही काल ने डंस लिया। वैसे क्या हुआ था उसे?"
-वही लाइलाज बीमारी- टीबी।
-अरे भई, टीबी कोई बीमारी है भला... सर्दी-खांसी और बुखार , दवा से ठीक ही हो जाता है।
-च्च, बेचारा गरीब आदमी कहाँ से दवा के पैसे लाता ?
- क्या कहते है भाई साहब, दवा की जगह वो दूसरी खुराक लिया करता था।
-ह्म्म्म् ,ऐसा है ? तभी तो बेचारा काम से गया।
किसी ने दीवाल घडी की ओर इशारा किया और सब ने फिर से गम्भीर मुद्रा बना शांति पाठ के लिए उपाध्याय सर की ओर देखा।
सर ने खखार कर गला साफ़ किया ही था कि पुन: किसी ने प्रश्न किया -"भई, मृत्युं की खबर पक्की है न? नहीं तो जिन्दा या बीमार आदमी का शोक सन्देश पढ़ना तो मृत्युं की अंतिम बुकिंग करने जैसा होगा।
-हुह, क्या कहते हैं? छुट्टी आवेदन में तो मृत्यु शब्द मैंने पढ़ा था।
- तब चलिए, सब खड़े हो दो मिनट का मौन रख लेते हैं।
आधे उठ खड़े हुए और आधे उठने के क्रम में थे ही कि पुन: किसी बुद्धिमान ने प्रश्न किया-"भई , पासवान का पुत्र ही मरा है न - सही सही तो पता है न क्योंकि शोक सन्देश की एक प्रति पासवान के यहाँ भेजनी होगी।"
-जी , सुना तो पुत्र का ही है , पर गारंटी से नहीं कह सकता।
वो उठने के क्रम में लोग पुनः बैठ गए -"पहले पता कर लें। .. शोक सभा तो कल भी की जा सकती है " और लोग अपना बैग बस्ता सँभालने लगें।
- थोडा ठहरिये भई, अभी आफिस से पता किये लेते हैं। आखिर हम सब यहाँ इसी प्रयोजन से तो एकत्रित हुए हैं।
-हैं, ये क्या बात हुई भला, इसी प्रयोजन वास्ते किसी को मरा घोषित कर देंगे क्या ?
इधर बहस में शोक सभा टंगी रही और उधर घडी ने छह बजा दिए।
-बताइए भला, शोक सभा के बाद कोई ठहरता है क्या? छह बज गए... क्या फायदा?
तभी किसी ने आफिस से आ पक्की खबर दी कि पासवान का भाई मरा है. फिर से कई प्रश्न उठे-"बड़ा या छोटा?"
- ये तो भई हमे नहीं पता। छोटा या बड़ा - भाई तो भाई होता है।
- हाँ चलिए, अब जल्दी से शोक सन्देश पढ़िए। वैसे भी काफी देर हो चली है।
और उपाध्याय जी ने शोक सन्देश पढ़ा-" ...पूरा विद्यालय परिवार इस आकस्मिक निधन से शोकाकुल है मर्माहत है … शोक संतप्त परिवार को इस संकट की घडी में ईश्वर सहन शक्ति दे… ॐ शांति , शांति , शांति। "
लोगों ने दो मिनट कनखियों का मौन 'ॐ शांति' के उच्चारण के लिए ओड़े रखा और ॐ शांति के साथ ही बैग थैले के साथ अपने अपने घरों के लिए किया प्रस्थान। उधर, बरौनी में पासवान ने भी अपने भाई के अंतिम संस्कार के लिए किया होगा प्रस्थान। बेचारा पासवान....
स्कूल पहुँची तो ऑफिस के बाहर एक भीड़ जुटी दिखी- छिछली भीड़, उतरे, चिंतित चेहरों की फुसफुसाती भीड़। विद्यालय में बीते कुछ महीनों में घटी कई असामान्य घटनाओं से मन आशंकित हुआ। सो, आगमन की हस्ताक्षर पुष्टि पश्चात् भीड़ से पूछा - क्या बात है, सब कुशल-मंगल तो है? रात में फिर कुछ अनहोनी तो नहीं घटी ? (कल-परसों वैसे कड़ाके की ठण्ड पड़ी थी.)
भीड़ से एक धीमी आवाज आयी-" आफिस कर्मचारी पासवान .…"
मैनें मष्तिष्क पर जोर डाला-"ऐं, कौन से पासवान जी?"
-जी, वो पतली मूछों वाला सांवला, दुबला, छोटा पासवान।
-अरे, हाँ.… क्या हुआ उन्हें? कल तक तो अच्छे भले थे।
(मष्तिष्क में एकाएक उनके डगमगाते कदम और लटपटाई अस्प्ष्ट शब्द कौंध गए- " हम तो सबके लिए है... काम से काम… सब खुश हम भी खुश... क्यों है न, मैडम?")
-नहीं, नहीं, उसे कुछ नहीं हुआ... वो उसका पुत्र बेचारा, च्च च्च... उसकी छुट्टी की अर्जी आयी है। वो बेचारा तो भागे भागे अपने घर बरौनी गया है।
घंटी बजी और कुछ ने स्टाफ-रुम की ओर रुख किया, कुछ ने अपनी कक्षाओं की ओर , बचे कुछ विद्यालय प्रांगण में खिली चटकी धुप में शोक सभा की मंत्रणा के लिए खड़े रहे ( चार दिनों बाद जो धुप निकली थी). विचार विमर्श कर ये प्रस्तावना पारित हुआ कि अंतिम कालांश में शोक सभा का आयोजन होगा। पर, क्षेत्रीय कार्यालय से डिप्टी कमिश्नर के आगमन के साथ उस पारित प्रस्ताव ने हारे जुआरी की तरह किया प्रस्थान।
खैर संध्या हुई और बच्चों की छुट्टी और डिप्टी कमिश्नर के प्रस्थान के बाद स्टाफ-रूम में पुन: शोक सभा के पारित प्रस्ताव ने किया आगमन -" चलिए भाई, अब पासवान के पुत्र के असमय मृत्यु पर हम सब दो मिनट का मौन रख उसकी आत्मा की शांति और शोक संतप्त परिवार के लिए प्रार्थना करें।"
सभी गम्भीर मुद्रा में खड़े हो गए। पर तभी किसी ने प्रश्न किया-" उम्र क्या थी?"
-उम्र? अरे, अभी तो उसका विवाह ही तय हुआ था।
कई आहें एक साथ उभरी- " हाय बेचारे को जवानी में ही काल ने डंस लिया। वैसे क्या हुआ था उसे?"
-वही लाइलाज बीमारी- टीबी।
-अरे भई, टीबी कोई बीमारी है भला... सर्दी-खांसी और बुखार , दवा से ठीक ही हो जाता है।
-च्च, बेचारा गरीब आदमी कहाँ से दवा के पैसे लाता ?
- क्या कहते है भाई साहब, दवा की जगह वो दूसरी खुराक लिया करता था।
-ह्म्म्म् ,ऐसा है ? तभी तो बेचारा काम से गया।
किसी ने दीवाल घडी की ओर इशारा किया और सब ने फिर से गम्भीर मुद्रा बना शांति पाठ के लिए उपाध्याय सर की ओर देखा।
सर ने खखार कर गला साफ़ किया ही था कि पुन: किसी ने प्रश्न किया -"भई, मृत्युं की खबर पक्की है न? नहीं तो जिन्दा या बीमार आदमी का शोक सन्देश पढ़ना तो मृत्युं की अंतिम बुकिंग करने जैसा होगा।
-हुह, क्या कहते हैं? छुट्टी आवेदन में तो मृत्यु शब्द मैंने पढ़ा था।
- तब चलिए, सब खड़े हो दो मिनट का मौन रख लेते हैं।
आधे उठ खड़े हुए और आधे उठने के क्रम में थे ही कि पुन: किसी बुद्धिमान ने प्रश्न किया-"भई , पासवान का पुत्र ही मरा है न - सही सही तो पता है न क्योंकि शोक सन्देश की एक प्रति पासवान के यहाँ भेजनी होगी।"
-जी , सुना तो पुत्र का ही है , पर गारंटी से नहीं कह सकता।
वो उठने के क्रम में लोग पुनः बैठ गए -"पहले पता कर लें। .. शोक सभा तो कल भी की जा सकती है " और लोग अपना बैग बस्ता सँभालने लगें।
- थोडा ठहरिये भई, अभी आफिस से पता किये लेते हैं। आखिर हम सब यहाँ इसी प्रयोजन से तो एकत्रित हुए हैं।
-हैं, ये क्या बात हुई भला, इसी प्रयोजन वास्ते किसी को मरा घोषित कर देंगे क्या ?
इधर बहस में शोक सभा टंगी रही और उधर घडी ने छह बजा दिए।
-बताइए भला, शोक सभा के बाद कोई ठहरता है क्या? छह बज गए... क्या फायदा?
तभी किसी ने आफिस से आ पक्की खबर दी कि पासवान का भाई मरा है. फिर से कई प्रश्न उठे-"बड़ा या छोटा?"
- ये तो भई हमे नहीं पता। छोटा या बड़ा - भाई तो भाई होता है।
- हाँ चलिए, अब जल्दी से शोक सन्देश पढ़िए। वैसे भी काफी देर हो चली है।
और उपाध्याय जी ने शोक सन्देश पढ़ा-" ...पूरा विद्यालय परिवार इस आकस्मिक निधन से शोकाकुल है मर्माहत है … शोक संतप्त परिवार को इस संकट की घडी में ईश्वर सहन शक्ति दे… ॐ शांति , शांति , शांति। "
लोगों ने दो मिनट कनखियों का मौन 'ॐ शांति' के उच्चारण के लिए ओड़े रखा और ॐ शांति के साथ ही बैग थैले के साथ अपने अपने घरों के लिए किया प्रस्थान। उधर, बरौनी में पासवान ने भी अपने भाई के अंतिम संस्कार के लिए किया होगा प्रस्थान। बेचारा पासवान....