तन्हाई की भी है कुछ विचित्र कहानी
पात्र हो कर भी हो जाते है गुमनामी
अतीत के कुँए में एक एक कर होते दफ़न
इक अथाह ख़ामोशी की ओढ़े कफ़न
हम अकेले तनहा हो भले
खुद पे ही हँस रो लेते हैं
खुद से ही बातें कर लेते हैं
खुद में गीत गुनगुना लेते हैं
कभी आड़ी तिरछी लकीरें खींच
उनमें रंग भर कुछ ख्वाब सजा लेते हैं
औ' अपने वीरानेपन का जश्न मना लेते हैं
पात्र हो कर भी हो जाते है गुमनामी
अतीत के कुँए में एक एक कर होते दफ़न
इक अथाह ख़ामोशी की ओढ़े कफ़न
हम अकेले तनहा हो भले
खुद पे ही हँस रो लेते हैं
खुद से ही बातें कर लेते हैं
खुद में गीत गुनगुना लेते हैं
कभी आड़ी तिरछी लकीरें खींच
उनमें रंग भर कुछ ख्वाब सजा लेते हैं
औ' अपने वीरानेपन का जश्न मना लेते हैं